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सच शायरी | शाही शायरी

सच

19 शेर

इतना सच बोल कि होंटों का तबस्सुम न बुझे
रौशनी ख़त्म न कर आगे अँधेरा होगा

निदा फ़ाज़ली




समझा है हक़ को अपने ही जानिब हर एक शख़्स
ये चाँद उस के साथ चला जो जिधर गया

पंडित दया शंकर नसीम लखनवी




मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा

परवीन शाकिर




वाक़िआ कुछ भी हो सच कहने में रुस्वाई है
क्यूँ न ख़ामोश रहूँ अहल-ए-नज़र कहलाऊँ

शहज़ाद अहमद




आसमानों से फ़रिश्ते जो उतारे जाएँ
वो भी इस दौर में सच बोलें तो मारे जाएँ

उम्मीद फ़ाज़ली