हर हक़ीक़त है एक हुस्न 'हफ़ीज़'
और हर हुस्न इक हक़ीक़त है
हफ़ीज़ बनारसी
रात को रात कह दिया मैं ने
सुनते ही बौखला गई दुनिया
हफ़ीज़ मेरठी
मैं सच तो बोलता हूँ मगर ऐ ख़ुदा-ए-हर्फ़
तू जिस में सोचता है मुझे वो ज़बान दे
हिमायत अली शाएर
मैं उस से झूट भी बोलूँ तो मुझ से सच बोले
मिरे मिज़ाज के सब मौसमों का साथी हो
इफ़्तिख़ार आरिफ़
सदाक़त हो तो दिल सीनों से खिंचने लगते हैं वाइ'ज़
हक़ीक़त ख़ुद को मनवा लेती है मानी नहीं जाती
जिगर मुरादाबादी
एक इक बात में सच्चाई है उस की लेकिन
अपने वादों से मुकर जाने को जी चाहता है
कफ़ील आज़र अमरोहवी
कुछ लोग जो ख़ामोश हैं ये सोच रहे हैं
सच बोलेंगे जब सच के ज़रा दाम बढ़ेंगे
कमाल अहमद सिद्दीक़ी