धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
वो लम्स मेरे बदन को गुलाब कर देगा
क़बा-ए-जिस्म के हर तार से गुज़रता हुआ
किरन का प्यार मुझे आफ़्ताब कर देगा
जुनूँ-पसंद है दिल और तुझ तक आने में
बदन को नाव लहू को चनाब कर देगा
मैं सच कहूँगी मगर फिर भी हार जाऊँगी
वो झूट बोलेगा और ला-जवाब कर देगा
अना-परस्त है इतना कि बात से पहले
वो उठ के बंद मिरी हर किताब कर देगा
सुकूत-ए-शहर-ए-सुख़न में वो फूल सा लहजा
समाअ'तों की फ़ज़ा ख़्वाब ख़्वाब कर देगा
इसी तरह से अगर चाहता रहा पैहम
सुख़न-वरी में मुझे इंतिख़ाब कर देगा
मिरी तरह से कोई है जो ज़िंदगी अपनी
तुम्हारी याद के नाम इंतिसाब कर देगा
ग़ज़ल
धनक धनक मिरी पोरों के ख़्वाब कर देगा
परवीन शाकिर