अब ज़मीनों को बिछाए कि फ़लक को ओढ़े
मुफ़्लिसी तो भरी बरसात में बे-घर हुई है
सलीम सिद्दीक़ी
टैग:
| मुफलिसी |
| 2 लाइन शायरी |
ग़म की दुनिया रहे आबाद 'शकील'
मुफ़लिसी में कोई जागीर तो है
शकील बदायुनी
जब चली ठंडी हवा बच्चा ठिठुर कर रह गया
माँ ने अपने ला'ल की तख़्ती जला दी रात को
सिब्त अली सबा
मुफ़लिसी सब बहार खोती है
मर्द का ए'तिबार खोती है
वली मोहम्मद वली