भूक चेहरों पे लिए चाँद से प्यारे बच्चे
बेचते फिरते हैं गलियों में ग़ुबारे बच्चे
बेदिल हैदरी
बीच सड़क इक लाश पड़ी थी और ये लिक्खा था
भूक में ज़हरीली रोटी भी मीठी लगती है
बेकल उत्साही
जुरअत-ए-शौक़ तो क्या कुछ नहीं कहती लेकिन
पाँव फैलाने नहीं देती है चादर मुझ को
बिस्मिल अज़ीमाबादी
जब आया ईद का दिन घर में बेबसी की तरह
तो मेरे फूल से बच्चों ने मुझ को घेर लिया
बिस्मिल साबरी
हम हसीन ग़ज़लों से पेट भर नहीं सकते
दौलत-ए-सुख़न ले कर बे-फ़राग़ हैं यारो
फ़ज़ा इब्न-ए-फ़ैज़ी
आया है इक राह-नुमा के इस्तिक़बाल को इक बच्चा
पेट है ख़ाली आँख में हसरत हाथों में गुल-दस्ता है
ग़ुलाम मोहम्मद क़ासिर
अपनी ग़ुर्बत की कहानी हम सुनाएँ किस तरह
रात फिर बच्चा हमारा रोते रोते सो गया
इबरत मछलीशहरी