EN اردو
सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया | शाही शायरी
sahar hui to KHayalon ne mujhko gher liya

ग़ज़ल

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया

बिस्मिल साबरी

;

सहर हुई तो ख़यालों ने मुझ को घेर लिया
जब आई शब तिरे ख़्वाबों ने मुझ को घेर लिया

मिरे लबों पे अभी नाम था बहारों का
हुजूम-ए-शौक़ में ख़ारों ने मुझ को घेर लिया

कभी जुनूँ के ज़माने कभी फ़िराक़-रुतें
कहाँ कहाँ तिरी यादों ने मुझ को घेर लिया

निकल के आ तो गया गहरे पानियों से मगर
कई तरह के सराबों ने मुझ को घेर लिया

ये जी में था कि निकल जाऊँ तुझ से दूर कहीं
कि तेरे ध्यान की बाँहों ने मुझ को घेर लिया

जब आया ईद का दिन घर में बेबसी की तरह
तो मेरे फूल से बच्चों ने मुझ को घेर लिया

हुजूम-ए-रंज से कैसे निकल सके 'बिस्मिल'
तिरी तलाश के रिश्तों ने मुझ को घेर लिया