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मां शायरी | शाही शायरी

मां

48 शेर

वो लम्हा जब मिरे बच्चे ने माँ पुकारा मुझे
मैं एक शाख़ से कितना घना दरख़्त हुई

हुमैरा रहमान




दुआ को हात उठाते हुए लरज़ता हूँ
कभी दुआ नहीं माँगी थी माँ के होते हुए

इफ़्तिख़ार आरिफ़




घर से निकले हुए बेटों का मुक़द्दर मालूम
माँ के क़दमों में भी जन्नत नहीं मिलने वाली

इफ़्तिख़ार आरिफ़




मुद्दतों ब'अद मयस्सर हुआ माँ का आँचल
मुद्दतों ब'अद हमें नींद सुहानी आई

इक़बाल अशहर




एक लड़का शहर की रौनक़ में सब कुछ भूल जाए
एक बुढ़िया रोज़ चौखट पर दिया रौशन करे

इरफ़ान सिद्दीक़ी




बूढ़ी माँ का शायद लौट आया बचपन
गुड़ियों का अम्बार लगा कर बैठ गई

इरशाद ख़ान ‘सिकंदर’




माँ की आग़ोश में कल मौत की आग़ोश में आज
हम को दुनिया में ये दो वक़्त सुहाने से मिले

कैफ़ भोपाली