मैं तिरे दर का भिकारी तू मिरे दर का फ़क़ीर
आदमी इस दौर में ख़ुद्दार हो सकता नहीं
इक़बाल साजिद
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मुझे दुश्मन से भी ख़ुद्दारी की उम्मीद रहती है
किसी का भी हो सर क़दमों में सर अच्छा नहीं लगता
जावेद अख़्तर
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जिस दिन मिरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके
उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मिरे सर में डाल दे
कैफ़ भोपाली
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