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थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे | शाही शायरी
thoDa sa aks chand ke paikar mein Dal de

ग़ज़ल

थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे

कैफ़ भोपाली

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थोड़ा सा अक्स चाँद के पैकर में डाल दे
तू आ के जान रात के मंज़र में डाल दे

जिस दिन मिरी जबीं किसी दहलीज़ पर झुके
उस दिन ख़ुदा शिगाफ़ मिरे सर में डाल दे

अल्लाह तेरे साथ है मल्लाह को न देख
ये टूटी फूटी नाव समुंदर में डाल दे

आ तेरे माल ओ ज़र को मैं तक़्दीस बख़्श दूँ
ला अपना माल ओ ज़र मिरी ठोकर में डाल दे

भाग ऐसे रहनुमा से जो लगता है ख़िज़्र सा
जाने ये किस जगह तुझे चक्कर में डाल दे

इस से तिरे मकान का मंज़र है बद-नुमा
चिंगारी मेरे फूस के छप्पर में डाल दे

मैं ने पनाह दी तुझे बारिश की रात में
तू जाते जाते आग मिरे घर में डाल दे

ऐ 'कैफ़' जागते तुझे पिछ्ला पहर हुआ
अब लाश जैसे जिस्म को बिस्तर में डाल दे