किसी को भेज के ख़त हाए ये कैसा अज़ाब आया
कि हर इक पूछता है नामा-बर आया जवाब आया
अहसन मारहरवी
मिट चले मेरी उमीदों की तरह हर्फ़ मगर
आज तक तेरे ख़तों से तिरी ख़ुशबू न गई
अख़्तर शीरानी
चूँ शम-ए-सोज़ाँ चूँ ज़र्रा हैराँ ज़े मेहर-ए-आँ-मह बगश्तम आख़िर
न नींद नैनाँ न अंग चैनाँ न आप आवे न भेजे पतियाँ
अमीर ख़ुसरो
मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा
यही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
अमीर मीनाई
तवक़्क़ो' है धोके में आ कर वह पढ़ लें
कि लिक्खा है नामा उन्हें ख़त बदल कर
अमीर मीनाई
कोई पुराना ख़त कुछ भूली-बिसरी याद
ज़ख़्मों पर वो लम्हे मरहम होते हैं
अंजुम इरफ़ानी
आप का ख़त नहीं मिला मुझ को
दौलत-ए-दो-जहाँ मिली मुझ को
असर लखनवी