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हवा शायरी | शाही शायरी

हवा

20 शेर

ये हवा यूँ ही ख़ाक छानती है
या कोई चीज़ खो गई है यहाँ

काशिफ़ हुसैन ग़ाएर




घुटन तो दिल की रही क़स्र-ए-मरमरीं में भी
न रौशनी से हुआ कुछ न कुछ हवा से हुआ

ख़ालिद हसन क़ादिरी




हवा तो है ही मुख़ालिफ़ मुझे डराता है क्या
हवा से पूछ के कोई दिए जलाता है क्या

ख़ुर्शीद तलब




कोई चराग़ जलाता नहीं सलीक़े से
मगर सभी को शिकायत हवा से होती है

ख़ुर्शीद तलब




हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थी
हमीं को शम्अ जलाने का हौसला न हुआ

क़ैसर-उल जाफ़री




मिरे सूरज आ! मिरे जिस्म पे अपना साया कर
बड़ी तेज़ हवा है सर्दी आज ग़ज़ब की है

शहरयार