वो तबस्सुम है कि 'ग़ालिब' की तरह-दार ग़ज़ल
देर तक उस की बलाग़त को पढ़ा करते हैं
आल-ए-अहमद सूरूर
'साज़' जब खुला हम पर शेर कोई 'ग़ालिब' का
हम ने गोया बातिन का इक सुराग़ सा पाया
अब्दुल अहद साज़
तुम को दावा है सुख़न-फ़हमी का
जाओ 'ग़ालिब' के तरफ़-दार बनो
आदिल मंसूरी
'हाली' सुख़न में 'शेफ़्ता' से मुस्तफ़ीद है
'ग़ालिब' का मो'तक़िद है मुक़ल्लिद है 'मीर' का
अल्ताफ़ हुसैन हाली
हम ख़ुद भी हुए नादिम जब हर्फ़-ए-दुआ निकला
समझे थे जिसे पत्थर वो शख़्स ख़ुदा निकला
हिलाल फ़रीद
हामी भी न थे मुंकिर-ए-'ग़ालिब' भी नहीं थे
हम अहल-ए-तज़बज़ुब किसी जानिब भी नहीं थे
इफ़्तिख़ार आरिफ़
क़िस्मत के बाज़ार से बस इक चीज़ ही तो ले सकते थे
तुम ने ताज उठाया मैं ने 'ग़ालिब' का दीवान लिया
सय्यद नसीर शाह