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DarBadari शायरी | शाही शायरी

DarBadari

12 शेर

किस से पूछूँ कि कहाँ गुम हूँ कई बरसों से
हर जगह ढूँढता फिरता है मुझे घर मेरा

निदा फ़ाज़ली




सब कुछ तो है क्या ढूँडती रहती हैं निगाहें
क्या बात है मैं वक़्त पे घर क्यूँ नहीं जाता

निदा फ़ाज़ली




इक घर बना के कितने झमेलों में फँस गए
कितना सुकून बे-सर-ओ-सामानियों में था

रियाज़ मजीद




कुछ बे-ठिकाना करती रहीं हिजरतें मुदाम
कुछ मेरी वहशतों ने मुझे दर-ब-दर किया

साबिर ज़फ़र




शाम होते ही खुली सड़कों की याद आती है
सोचता रोज़ हूँ मैं घर से नहीं निकलूँगा

शहरयार