रुख़्सार पर है रंग-ए-हया का फ़रोग़ आज
बोसे का नाम मैं ने लिया वो निखर गए
हकीम मोहम्मद अजमल ख़ाँ शैदा
बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
अरे कम-बख़्त कुछ हिसाब भी है
हसन बरेलवी
मुफ़्त बोसा हसीं नहीं देते
दिल जो देते हैं दाम लेते हैं
इम्दाद इमाम असर
मज़ा आब-ए-बक़ा का जान-ए-जानाँ
तिरा बोसा लिया होवे सो जाने
इश्क़ औरंगाबादी
न हो बरहम जो बोसा बे-इजाज़त ले लिया मैं ने
चलो जाने दो बेताबी में ऐसा हो ही जाता है
जलाल लखनवी
जल्दी तलब-ए-बोसा पे कीजे तो कहे वाह
ऐसा इसे क्या समझे हो तुम मुँह का निवाला
जुरअत क़लंदर बख़्श
लब-ए-ख़याल से उस लब का जो लिया बोसा
तो मुँह ही मुँह में अजब तरह का मज़ा आया
जुरअत क़लंदर बख़्श