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तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है | शाही शायरी
tum bhi ho KHanjar-e-KHushab bhi hai

ग़ज़ल

तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है

हसन बरेलवी

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तुम भी हो ख़ंजर-ए-खुशाब भी है
और ये ख़ानुमाँ-ख़राब भी है

वो भी हैं साग़र-ए-शराब भी है
चाँद के पास आफ़्ताब भी है

बोले वो बोसा-हा-ए-पैहम पर
अरे कम-बख़्त कुछ हिसाब भी है

पूछते जाते हैं ये हम सब से
मजलिस-ए-वाज़ में शराब भी है

देख आओ मरीज़-ए-फ़ुर्क़त को
रस्म-ए-दुनिया भी है सवाब भी है