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बोसा शायरी | शाही शायरी

बोसा

41 शेर

तेज़ हवाएँ आँखों में तो रेत दुखों की भर ही गईं
जलते लम्हे रफ़्ता रफ़्ता दिल को भी झुलसाएँगे

बशर नवाज़




गड़ सीं मीठा है बोसा तुझ लब का
इस जलेबी में क़ंद ओ शक्कर है

फ़ाएज़ देहलवी




गुड़ से मीठा है बोसा तुझ लब का
इस जलेबी में क़ंद-ओ-शक्कर है

फ़ाएज़ देहलवी




बोसे बीवी के हँसी बच्चों की आँखें माँ की
क़ैद-ख़ाने में गिरफ़्तार समझिए हम को

फ़ुज़ैल जाफ़री




लब-ए-जाँ-बख़्श तक जा कर रहे महरूम बोसा से
हम इस पानी के प्यासे थे जो तड़पाता है साहिल पर

हबीब मूसवी




बोसा-ए-रुख़्सार पर तकरार रहने दीजिए
लीजिए या दीजिए इंकार रहने दीजिए

हफ़ीज़ जौनपुरी




बे-गिनती बोसे लेंगे रुख़-ए-दिल-पसंद के
आशिक़ तिरे पढ़े नहीं इल्म-ए-हिसाब को

we shall kiss your beautiful face without counting
your lover is unversed in the science of accounting

हैदर अली आतिश