हाए वो उस का मौज-ख़ेज़ बदन
मैं तो प्यासा रहा लब-ए-जू भी
जौन एलिया
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याद आते हैं मोजज़े अपने
और उस के बदन का जादू भी
जौन एलिया
लगते ही हाथ के जो खींचे है रूह तन से
क्या जानें क्या वो शय है उस के बदन के अंदर
जुरअत क़लंदर बख़्श
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नूर-ए-बदन से फैली अंधेरे में चाँदनी
कपड़े जो उस ने शब को उतारे पलंग पर
लाला माधव राम जौहर
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तुझ सा कोई जहान में नाज़ुक-बदन कहाँ
ये पंखुड़ी से होंट ये गुल सा बदन कहाँ
लाला माधव राम जौहर
गूँध के गोया पत्ती गुल की वो तरकीब बनाई है
रंग बदन का तब देखो जब चोली भीगे पसीने में
मीर तक़ी मीर
अँधेरी रातों में देख लेना
दिखाई देगी बदन की ख़ुश्बू
मोहम्मद अल्वी
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