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बचपन शायरी | शाही शायरी

बचपन

23 शेर

असीर-ए-पंजा-ए-अहद-ए-शबाब कर के मुझे
कहाँ गया मिरा बचपन ख़राब कर के मुझे

मुज़्तर ख़ैराबादी




अब तक हमारी उम्र का बचपन नहीं गया
घर से चले थे जेब के पैसे गिरा दिए

नश्तर ख़ानक़ाही




बच्चा बोला देख कर मस्जिद आली-शान
अल्लाह तेरे एक को इतना बड़ा मकान

निदा फ़ाज़ली




बच्चों के छोटे हाथों को चाँद सितारे छूने दो
चार किताबें पढ़ कर ये भी हम जैसे हो जाएँगे

let the hands of innocents reach out for stars and moon
with education they'd become like us so very soon

निदा फ़ाज़ली




बड़ी हसरत से इंसाँ बचपने को याद करता है
ये फल पक कर दोबारा चाहता है ख़ाम हो जाए

नुशूर वाहिदी




अपने बच्चों को मैं बातों में लगा लेता हूँ
जब भी आवाज़ लगाता है खिलौने वाला

राशिद राही




कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था
खेल में भी तो आधा आधा आँगन था

शारिक़ कैफ़ी