हम तो बचपन में भी अकेले थे
सिर्फ़ दिल की गली में खेले थे
जावेद अख़्तर
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इक खिलौना जोगी से खो गया था बचपन में
ढूँढता फिरा उस को वो नगर नगर तन्हा
जावेद अख़्तर
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मैं बचपन में खिलौने तोड़ता था
मिरे अंजाम की वो इब्तिदा थी
जावेद अख़्तर
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मेरे रोने का जिस में क़िस्सा है
उम्र का बेहतरीन हिस्सा है
जोश मलीहाबादी
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मेरा बचपन भी साथ ले आया
गाँव से जब भी आ गया कोई
कैफ़ी आज़मी
जिस के लिए बच्चा रोया था और पोंछे थे आँसू बाबा ने
वो बच्चा अब भी ज़िंदा है वो महँगा खिलौना टूट गया
महशर बदायुनी
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फ़रिश्ते आ कर उन के जिस्म पर ख़ुश्बू लगाते हैं
वो बच्चे रेल के डिब्बों में जो झाड़ू लगाते हैं
मुनव्वर राना