क्या क्या दिल-ए-मुज़्तर के अरमान मचलते हैं
तस्वीर-ए-क़यामत है ज़ालिम तिरी अंगड़ाई
राम कृष्ण मुज़्तर
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बे-साख़्ता बिखर गई जल्वों की काएनात
आईना टूट कर तिरी अंगड़ाई बन गया
साग़र सिद्दीक़ी
क्यूँ चमक उठती है बिजली बार बार
ऐ सितमगर ले न अंगड़ाई बहुत
साहिल अहमद
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सुन चुके जब हाल मेरा ले के अंगड़ाई कहा
किस ग़ज़ब का दर्द ज़ालिम तेरे अफ़्साने में था
शाद अज़ीमाबादी
तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
शकील बदायुनी