दे इसे भी फ़रोग़-ए-हुस्न की भीक
दिल भी लग कर क़तार में आया
अब्बास ताबिश
एक मुद्दत से मिरी माँ नहीं सोई 'ताबिश'
मैं ने इक बार कहा था मुझे डर लगता है
अब्बास ताबिश
फ़क़त माल-ओ-ज़र-ए-दीवार-ओ-दर अच्छा नहीं लगता
जहाँ बच्चे नहीं होते वो घर अच्छा नहीं लगता
अब्बास ताबिश
घर पहुँचता है कोई और हमारे जैसा
हम तिरे शहर से जाते हुए मर जाते हैं
अब्बास ताबिश
हम हैं सूखे हुए तालाब पे बैठे हुए हंस
जो तअल्लुक़ को निभाते हुए मर जाते हैं
अब्बास ताबिश
हम जुड़े रहते थे आबाद मकानों की तरह
अब ये बातें हमें लगती हैं फ़सानों की तरह
अब्बास ताबिश
हमारे जैसे वहाँ किस शुमार में होंगे
कि जिस क़तार में मजनूँ का नाम आख़िरी है
अब्बास ताबिश