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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

एक ना-तवाँ रिश्ता उस से अब भी बाक़ी है
जिस तरह दुआओं का और असर का रिश्ता है

अब्बास रिज़वी




ख़ौफ़ ऐसा है कि दुनिया के सताए हुए लोग
कभी मिम्बर कभी मेहराब से डर जाते हैं

अब्बास रिज़वी




क्या करूँ ख़िलअत ओ दस्तार की ख़्वाहिश कि मुझे
ज़ीस्त करने का सलीक़ा भी ज़ियाँ से आया

अब्बास रिज़वी




मैं जो चुप था हमा-तन-गोश थी बस्ती सारी
अब मिरे मुँह में ज़बाँ है कोई सुनता ही नहीं

अब्बास रिज़वी




तलब करें तो ये आँखें भी इन को दे दूँ मैं
मगर ये लोग इन आँखों के ख़्वाब माँगते हैं

अब्बास रिज़वी




तमाम उम्र की बे-ताबियों का हासिल था
वो एक लम्हा जो सदियों के पेश-ओ-पस में रहा

अब्बास रिज़वी




वहशत के इस नगर में वो क़ौस-ए-क़ुज़ह से लोग
जाने कहाँ से आए थे जाने किधर गए

अब्बास रिज़वी