वो हादसे भी दहर में हम पर गुज़र गए
जीने की आरज़ू में कई बार मर गए
उनवान चिश्ती
चला था मैं तो समुंदर की तिश्नगी ले कर
मिला ये कैसा सराबों का सिलसिला मुझ को
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
चला था मैं तो समुंदर की तिश्नगी ले कर
मिला ये कैसा सराबों का सिलसिला मुझ को
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
दीवाना-वार नाचिये हँसिए गुलों के साथ
काँटे अगर मिलें तो जिगर में चुभोइए
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
मालूम है 'उर्फ़ी' जो है क़िस्मत में हमारी
सहरा ही कोई गिर्या-ए-शबनम को मिलेगा
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
मालूम है 'उर्फ़ी' जो है क़िस्मत में हमारी
सहरा ही कोई गिर्या-ए-शबनम को मिलेगा
उर्फ़ी आफ़ाक़ी
वो आए जाता है कब से पर आ नहीं जाता
वही सदा-ए-क़दम का है सिलसिला कि जो था
उर्फ़ी आफ़ाक़ी