वो पेड़ तो नहीं था कि अपनी जगह रहे
हम शाख़ तो नहीं थे मगर फिर भी कट गए
अख़्तर होशियारपुरी
वो शायद कोई सच्ची बात कह दे
उसे फिर बद-गुमाँ करना पड़ा है
अख़्तर होशियारपुरी
यही दिन में ढलेगी रात 'अख़्तर'
यही दिन का उजाला रात होगा
अख़्तर होशियारपुरी
ये कहीं उम्र-ए-गुज़िश्ता तो नहीं तुम तो नहीं
कोई फिरता है सर-ए-शहर-ए-वफ़ा आवारा
अख़्तर होशियारपुरी
ये क्या कि मुझ को छुपाया है मेरी नज़रों से
कभी तो मुझ को मिरे सामने भी लाए वो
अख़्तर होशियारपुरी
ये सरगुज़िश्त-ए-ज़माना ये दास्तान-ए-हयात
अधूरी बात में भी रह गई कमी मेरी
अख़्तर होशियारपुरी
ज़माना अपनी उर्यानी पे ख़ूँ रोएगा कब तक
हमें देखो कि अपने आप को ओढ़े हुए हैं
अख़्तर होशियारपुरी