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फिर ये हुआ कि लोग दरीचों से हट गए | शाही शायरी
phir ye hua ki log darichon se haT gae

ग़ज़ल

फिर ये हुआ कि लोग दरीचों से हट गए

अख़्तर होशियारपुरी

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फिर ये हुआ कि लोग दरीचों से हट गए
लेकिन वो गर्द थी कि दर-ओ-बाम अट गए

कुछ लोग झाँकने लगे दीवार-ए-शहर से
कुछ लोग अपने ख़ून के अंदर सिमट गए

वो पेड़ तो नहीं था कि अपनी जगह रहे
हम शाख़ तो नहीं थे मगर फिर भी कट गए

पुर-हौल जंगलों में हवा चीख़ती फिरी
वापस घरों को क्यूँ न मुसाफ़िर पलट गए

इतने तो रास्ते में भी साए नहीं मिले
जितने कि लोग आए और आ कर पलट गए

मिट्टी के इन चराग़ों की हिम्मत तो देखिए
जो जाते जाते शब की सफ़ों को उलट गए

जब हम से अपनी ज़ात का पत्थर न उठ सका
'अख़्तर' हम आइने के मुक़ाबिल ही डट गए