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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




बोसा जो रुख़ का देते नहीं लब का दीजिए
ये है मसल कि फूल नहीं पंखुड़ी सही

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है
मसल है रो रहे हो क्यूँ कहा सूरत ही ऐसी है

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




दिखाने को नहीं हम मुज़्तरिब हालत ही ऐसी है
मसल है रो रहे हो क्यूँ कहा सूरत ही ऐसी है

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बला
कश्ती ख़ुदा पे छोड़ दूँ लंगर को तोड़ दूँ

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़




एहसान ना-ख़ुदा का उठाए मिरी बला
कश्ती ख़ुदा पे छोड़ दूँ लंगर को तोड़ दूँ

शेख़ इब्राहीम ज़ौक़