लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
अपनी ख़ुशी न आए न अपनी ख़ुशी चले
I came as life had brought me, as death takes me I go
I came not of my own accord nor willingly I go
हो उम्र-ए-ख़िज़्र भी तो हो मालूम वक़्त-ए-मर्ग
हम क्या रहे यहाँ अभी आए अभी चले
Had I lived as long as Khizr, then dying I would say
where did I stay long enough, I came and went away
हम से भी इस बिसात पे कम होंगे बद-क़िमार
जो चाल हम चले सो निहायत बुरी चले
on this chequered board would be few novices like me
all the moves that I have made were hopeless surely
बेहतर तो है यही कि न दुनिया से दिल लगे
पर क्या करें जो काम न बे-दिल-लगी चले
it’s better if the heart is not enmeshed in life, it's true
what's to be done if without being attached one cannot do?
लैला का नाक़ा दश्त में तासीर-ए-इश्क़ से
सुन कर फ़ुग़ान-ए-क़ैस बजा-ए-हुदी चले
in the desert Laila's camel does its zeal display
Hearing Qais's plaintive cry it ventures forth that way
नाज़ाँ न हो ख़िरद पे जो होना है हो वही
दानिश तिरी न कुछ मिरी दानिश-वरी चले
what's got to happen, will, don’t pride in your intellect
your wisdom or my wisdom here, will be of no effect
दुनिया ने किस का राह-ए-फ़ना में दिया है साथ
तुम भी चले चलो यूँही जब तक चली चले
जाते हवा-ए-शौक़ में हैं इस चमन से 'ज़ौक़'
अपनी बला से बाद-ए-सबा अब कभी चले
ग़ज़ल
लाई हयात आए क़ज़ा ले चली चले
शेख़ इब्राहीम ज़ौक़