वो बात सोच के मैं जिस को मुद्दतों जीता
बिछड़ते वक़्त बताने की क्या ज़रूरत थी
शारिक़ कैफ़ी
वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
मिले कुछ डूबने वाले वहाँ भी
शारिक़ कैफ़ी
वो बस्ती ना-ख़ुदाओं की थी लेकिन
मिले कुछ डूबने वाले वहाँ भी
शारिक़ कैफ़ी
यही कमरा था जिस में चैन से हम जी रहे थे
ये तन्हाई तो इतनी बे-मुरव्वत अब हुई है
शारिक़ कैफ़ी
अधूरा हो के हूँ कितना मुकम्मल
ब-मुश्किल ज़िंदगी बिखरा हुआ हूँ
शौकत परदेसी
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
फिर उस के बा'द दिल में क्या ख़बर क्या आरज़ू होती
शौकत परदेसी
अगर तुम जल भी जाते तो न होता ख़त्म अफ़्साना
फिर उस के बा'द दिल में क्या ख़बर क्या आरज़ू होती
शौकत परदेसी