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2 लाइन शायरी शायरी | शाही शायरी

2 लाइन शायरी

22761 शेर

ये माजरा-ए-मोहब्बत समझ में आ न सका
वो हाथ आए तो मैं हाथ उन्हें लगा न सका

शाकिर कलकत्तवी




ज़रा चश्म-ए-करम से देख लो तुम
सहारा ढूँढता हूँ ज़िंदगी का

शाकिर कलकत्तवी




ज़रा चश्म-ए-करम से देख लो तुम
सहारा ढूँढता हूँ ज़िंदगी का

शाकिर कलकत्तवी




कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है
शाम ढले जब पंछी घर लौट आते हैं

शमीम अब्बास




कोई ऐसे वक़्त में हम से बिछड़ा है
शाम ढले जब पंछी घर लौट आते हैं

शमीम अब्बास




साल, पर साल, और फिर इस साल
मुंतज़िर हम थे मुंतज़िर हम हैं

शमीम अब्बास




टटोलो परख लो चलो आज़मा लो
ख़ुदा की क़सम बा-ख़ुदा आदमी हूँ

शमीम अब्बास