वो हम से दूर होते जा रहे हैं
बहुत मग़रूर होते जा रहे हैं
शकील बदायुनी
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वो हम से ख़फ़ा हैं हम उन से ख़फ़ा हैं
मगर बात करने को जी चाहता है
शकील बदायुनी
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वो हवा दे रहे हैं दामन की
हाए किस वक़्त नींद आई है
शकील बदायुनी
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वो हवा दे रहे हैं दामन की
हाए किस वक़्त नींद आई है
शकील बदायुनी
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ये अदा-ए-बे-नियाज़ी तुझे बेवफ़ा मुबारक
मगर ऐसी बे-रुख़ी क्या कि सलाम तक न पहुँचे
शकील बदायुनी
ये किस ख़ता पे रूठ गई चश्म-ए-इल्तिफ़ात
ये कब का इंतिक़ाम लिया मुझ ग़रीब से
शकील बदायुनी
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ये किस ख़ता पे रूठ गई चश्म-ए-इल्तिफ़ात
ये कब का इंतिक़ाम लिया मुझ ग़रीब से
शकील बदायुनी
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