आता है तो आ वादा-फ़रामोश वगर्ना
हर रोज़ का ये लैत-ओ-ल'अल जाए तो अच्छा
शाह नसीर
अब्र-ए-नैसाँ की भी झड़ जाएगी पल में शेख़ी
दीदा-ए-तर को अगर अश्क-फ़िशाँ कीजिएगा
शाह नसीर
ऐ ख़ाल-ए-रुख़-ए-यार तुझे ठीक बनाता
जा छोड़ दिया हाफ़िज़-ए-क़ुरआन समझ कर
शाह नसीर
ब'अद-ए-मजनूँ क्यूँ न हूँ मैं कार-फ़रमा-ए-जुनूँ
इश्क़ की सरकार से मलबूस-ए-रुस्वाई मिला
शाह नसीर
बजाए आब मय-ए-नर्गिसी पिला मुझ को
ग़िज़ा कुछ और न बादाम के सिवा ठहरा
शाह नसीर
बना कर मन को मनका और रग-ए-तन के तईं रिश्ता
उठा कर संग से फिर हम ने चकनाचूर की तस्बीह
शाह नसीर
बसान-ए-आइना हम ने तो चश्म वा कर ली
जिधर निगाह की साफ़ उस को बरमला देखा
शाह नसीर