मैं गहरे पानियों को चीर देता हूँ मगर 'हसरत'
जहाँ पानी बहुत कम हो वहाँ मैं डूब जाता हूँ
अजीत सिंह हसरत
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पहले वक़्तों में हो तो हो शायद
दोस्ती अब हसीन गाली है
अजीत सिंह हसरत
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रूठा यार मनाना है
कोई स्वाँग रचाओ अब
अजीत सिंह हसरत
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सर्द आहों से दिल की आग बुझा
गर्म अश्कों से जाम भरता जा
अजीत सिंह हसरत
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तीरगी में नूर आएगा नज़र
डूबते सूरज को भी सज्दा करो
अजीत सिंह हसरत
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तिरे पयाम ही से सुर्ख़ हो गया है बदन
कि मेंह पड़ा नहीं है खिल उठे कँवल पहले
अजीत सिंह हसरत
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वो दिन हवा हुए वो ज़माने गुज़र गए
बंदे का जब क़याम परी-ज़ादियों में था
अजीत सिंह हसरत
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