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अगर फ़क़ीर से मिलना है तो सँभल पहले | शाही शायरी
agar faqir se milna hai to sambhal pahle

ग़ज़ल

अगर फ़क़ीर से मिलना है तो सँभल पहले

अजीत सिंह हसरत

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अगर फ़क़ीर से मिलना है तो सँभल पहले
अमीर बन के न जा पैरहन बदल पहले

पड़ेगी तुझ पे सुनहरी किरन मोहब्बत की
हरीम-ए-ज़ात के जंगल से ख़ुद निकल पहले

सलाम कहने को आएगी ख़ुद-बख़ुद मंज़िल
मोहब्बतों के कठिन रास्तों पे चल पहले

जटाएँ काँच के बंदे तो ख़ूब हैं लेकिन
तू ख़्वाहिशों पे भी जोगी भभूत मल पहले

शुमार तेरा भी होगा कमाल वालों में
किसी कमाल के साँचे में तू भी ढल पहले

तिरे पयाम ही से सुर्ख़ हो गया है बदन
कि मेंह पड़ा नहीं है खिल उठे कँवल पहले

सुख़न-वरों की रियाज़त पे फिर गया पानी
सुनाई शोख़ निगाहों ने वो ग़ज़ल पहले

हिले न होंट न आँखों ने लब-कुशाई की
जबीन-ए-हुस्न पे क्यूँ पड़ गए हैं बल पहले

तुझे सलाम करे उठ के किस तरह 'हसरत'
तू आया देर से और आ गई अजल पहले