तुम्हारे लोग कहते हैं कमर है
कहाँ है किस तरह की है किधर है
आबरू शाह मुबारक
तुम्हारी देख कर ये ख़ुश-ख़िरामी आब-रफ़्तारी
गया है भूल हैरत सीं पिया पानी के तईं बहना
आबरू शाह मुबारक
उस वक़्त दिल पे क्यूँके कहूँ क्या गुज़र गया
बोसा लेते लिया तो सही लेक मर गया
आबरू शाह मुबारक
उस वक़्त जान प्यारे हम पावते हैं जी सा
लगता है जब बदन से तैरे बदन हमारा
आबरू शाह मुबारक
वस्ल की अर्ज़ का जब वक़्त कभी पाता हूँ
जा हैं ख़ामोशी सीं तब लब मिरे आपस में मिल
आबरू शाह मुबारक
यारो हमारा हाल सजन सीं बयाँ करो
ऐसी तरह करो कि उसे मेहरबाँ करो
आबरू शाह मुबारक
यूँ 'आबरू' बनावे दिल में हज़ार बातें
जब रू-ब-रू हो तेरे गुफ़्तार भूल जावे
आबरू शाह मुबारक