किस तरह पहुँचूँ मैं अपने यार किन पंजाब में
हो गया राहों में चश्मों से दो-आबा बे-तरह
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
किस से कहूँ मैं हाल-ए-दिल अपना कि ता सुने
इस शहर में रहा भी कोई दर्द-मंद है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ख़ुदा को जिस से पहुँचें हैं वो और ही राह है ज़ाहिद
पटकते सर तिरी गो घिस गई सज्दों से पेशानी
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ख़ाकसारों का दिल ख़ज़ीना है
इस ज़मीं में भी कुछ दफ़ीना है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
खेल सब छोड़ खेल अपना खेल
आप क़ुदरत का तू खिलौना है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
नशे की लहर में कुछ बक रहा है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
कोहकन जाँ-कनी है मुश्किल काम
वर्ना बहतेरे हैं पथर फोड़े
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
खुल गई जिस की आँख मिस्ल-ए-हबाब
घर को अपने ख़राब जाने है
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम
ख़ुम-ख़ाना मय-कशों ने किया इस क़दर तही
क़तरा नहीं रहा है जो शीशे निचोड़यए
शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम