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मुझे क्या देख कर तू तक रहा है | शाही शायरी
mujhe kya dekh kar tu tak raha hai

ग़ज़ल

मुझे क्या देख कर तू तक रहा है

शैख़ ज़हूरूद्दीन हातिम

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मुझे क्या देख कर तू तक रहा है
तिरे हाथों कलेजा पक रहा है

जहाँ क्यूँकर न हो नज़रों में तारीक
तिरा मुँह ज़ुल्फ़ नीचे ढक रहा है

तुम्हारी ना-क़दर-दानी का अफ़्सोस
हमारे जी में मरते तक रहा है

ख़ुदा के वास्ते उस से न बोलो
नशे की लहर में कुछ बक रहा है

फिरा अब तक नहीं 'हातिम' का क़ासिद
ख़ुदाया राह में क्या थक रहा है