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सरफ़राज़ शाहिद शायरी | शाही शायरी

सरफ़राज़ शाहिद शेर

16 शेर

ऐसे लगे है नौकरी माल-ए-हराम के बग़ैर
जैसे हो 'दाग़' की ग़ज़ल बादा ओ जाम के बग़ैर

सरफ़राज़ शाहिद




अवामुन्नास को ऐसे दबोचा है गिरानी ने
कि जैसे कैट के पंजे में कोई रैट होता है

सरफ़राज़ शाहिद




बजट की कई सख़्तियाँ और भी हैं
''अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं''

सरफ़राज़ शाहिद




फ़क़त रंग ही उन का काला नहीं है
इसी क़िस्म की ख़ूबियाँ और भी हैं

सरफ़राज़ शाहिद




हम ने तो उन्हें जामिआ से नक़्द ख़रीदा
फिर किस तरह जाली हुईं अस्नाद हमारी

सरफ़राज़ शाहिद




ईद पर मसरूर हैं दोनों मियाँ बीवी बहुत
इक ख़रीदारी से पहले इक ख़रीदारी के ब'अद

सरफ़राज़ शाहिद




इस दौर के मर्दों की जो की शक्ल-शुमारी
साबित हुआ दुनिया में ख़्वातीन बहुत हैं

सरफ़राज़ शाहिद




कोई ख़ुश-ज़ौक़ ही 'शाहिद' ये नुक्ता जान सकता है
कि मेरे शेर और नख़रे तुम्हारे एक जैसे हैं

सरफ़राज़ शाहिद




कुछ मह-जबीं लिबास के फैशन की दौड़ में
पाबंदी-ए-लिबास से आगे निकल गए

सरफ़राज़ शाहिद