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कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए | शाही शायरी
kuchh log rabt-e-KHas se aage nikal gae

ग़ज़ल

कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए

सरफ़राज़ शाहिद

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कुछ लोग रब्त-ए-ख़ास से आगे निकल गए
मातहत अपने बॉस से आगे निकल गए

वो तीस साल से है वही बीस साल की
हम ख़ैर से पचास से आगे निकल गए

कुछ मह-जबीं लिबास के फैशन की दौड़ में
पाबंदी-ए-लिबास से आगे निकल गए

डाका पड़ा तो लुट के हुआ है ये फ़ाएदा
हम ख़ौफ़ और हिरास से आगे निकल गए

अपने ही टीचरों की जो रख लीं ट्यूशनें
बच्चे मिरे क्लास से आगे निकल गए

लैला के साथ कार भी आए जहेज़ में
मजनूँ ये कह के सास से आगे निकल गए