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सज्जाद बाक़र रिज़वी शायरी | शाही शायरी

सज्जाद बाक़र रिज़वी शेर

16 शेर

पहले चादर की हवस में पाँव फैलाए बहुत
अब ये दुख है पाँव क्यूँ चादर से बाहर आ गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी




फिर ज़ेहन की गलियों में सदा गूँजी है कोई
फिर सोच रहे हैं कहीं आवाज़ सुनी है

सज्जाद बाक़र रिज़वी




फिरती थी ले के शोरिश-ए-दिल कू-ब-कू हमें
मंज़िल मिली तो शोरिश-ए-दिल का पता न था

सज्जाद बाक़र रिज़वी




सामान-ए-दिल को बे-सर-ओ-सामानियाँ मिलीं
कुछ और भी जवाब थे मेरे सवाल के

सज्जाद बाक़र रिज़वी




शहर के आबाद सन्नाटों की वहशत देख कर
दिल को जाने क्या हुआ मैं शाम से घर आ गया

सज्जाद बाक़र रिज़वी




टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए

सज्जाद बाक़र रिज़वी




ज़ुल्फ़ें इधर खुलीं अधर आँसू उमँड पड़े
हैं सब के अपने अपने रवाबित घटा के साथ

सज्जाद बाक़र रिज़वी