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मुनीर शिकोहाबादी शायरी | शाही शायरी

मुनीर शिकोहाबादी शेर

107 शेर

उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज
की अहल-ए-सुख़न ने तिरी तारीफ़ बड़ी बात

मुनीर शिकोहाबादी




तेग़-ए-अबरू के मुझे ज़ख़्म-ए-कुहन याद आए
माह-ए-नौ को भी मैं तलवार पुरानी समझा

मुनीर शिकोहाबादी




तेरी फ़ुर्क़त में शराब-ए-ऐश का तोड़ा हुआ
जाम-ए-मय दस्त-ए-सुबू के वास्ते फोड़ा हुआ

मुनीर शिकोहाबादी




तिरे कूचे से जुदा रोते हैं शब को आशिक़
आज-कल बारिश-ए-शबनम है चमन से बाहर

मुनीर शिकोहाबादी




उलझा है मगर ज़ुल्फ़ में तक़रीर का लच्छा
सुलझी हुई हम ने न सुनी बात तुम्हारी

मुनीर शिकोहाबादी




उस बुत के नहाने से हुआ साफ़ ये पानी
मोती भी सदफ़ में तह-ए-दरिया नज़र आया

मुनीर शिकोहाबादी




उसी हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे
रंग-ए-गुल-ए-फ़िरदौस भी कच्चा नज़र आया

मुनीर शिकोहाबादी




ज़ाहिदो पूजा तुम्हारी ख़ूब होगी हश्र में
बुत बना देगी तुम्हें ये हक़-परस्ती एक दिन

मुनीर शिकोहाबादी




याद उस बुत की नमाज़ों में जो आई मुझ को
तपिश-ए-शौक़ से हर बार में बैठा उट्ठा

मुनीर शिकोहाबादी