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मुनीर शिकोहाबादी शायरी | शाही शायरी

मुनीर शिकोहाबादी शेर

107 शेर

उसी हूर की रंगत उड़ी रोने से हमारे
रंग-ए-गुल-ए-फ़िरदौस भी कच्चा नज़र आया

मुनीर शिकोहाबादी




उस्ताद के एहसान का कर शुक्र 'मुनीर' आज
की अहल-ए-सुख़न ने तिरी तारीफ़ बड़ी बात

मुनीर शिकोहाबादी




वहाँ पहुँच नहीं सकतीं तुम्हारी ज़ुल्फ़ें भी
हमारे दस्त-ए-तलब की जहाँ रसाई है

मुनीर शिकोहाबादी




वहशत में बसर होते हैं अय्याम-ए-शबाब आह
ये शाम-ए-जवानी है कि साया है हिरन का

मुनीर शिकोहाबादी




विर्द-ए-इस्म-ए-ज़ात खोला चाहता है ये गिरह
मेरे दिल पर दाँत है अल्लाह की तश्दीद का

मुनीर शिकोहाबादी




याद उस बुत की नमाज़ों में जो आई मुझ को
तपिश-ए-शौक़ से हर बार में बैठा उट्ठा

मुनीर शिकोहाबादी




ज़ाहिदो पूजा तुम्हारी ख़ूब होगी हश्र में
बुत बना देगी तुम्हें ये हक़-परस्ती एक दिन

मुनीर शिकोहाबादी




ज़िंदा-ए-जावेद हैं मारा जिन्हें उस शोख़ ने
बर-तरफ़ जो हो गए उन की बहाली हो गई

मुनीर शिकोहाबादी