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मुनीर शिकोहाबादी शायरी | शाही शायरी

मुनीर शिकोहाबादी शेर

107 शेर

रोज़ दिल-हा-ए-मै-कशाँ टूटे
ऐ ख़ुदा जाम-ए-आसमाँ टूटे

मुनीर शिकोहाबादी




सब ने लूटे उन के जल्वे के मज़े
शर्बत-ए-दीदार जूठा हो गया

मुनीर शिकोहाबादी




सब्र कब तक राह पैदा हो कि ऐ दिल जान जाए
एक टक्कर मार कर सर फोड़ या दीवार तोड़

मुनीर शिकोहाबादी




सदमे से बाल शीशा-ए-गर्दूँ में पड़ गया
तुम ने दिखाई कोठे पर अपनी कमर किसे

मुनीर शिकोहाबादी




सख़्ती-ए-दहर हुए बहर-ए-सुख़न में आसाँ
क़ाफ़िए आए जो पत्थर के मैं पानी समझा

मुनीर शिकोहाबादी




सरसों जो फूली दीदा-ए-जाम-ए-शराब में
बिंत-उल-अनब से करने लगा शोख़ियाँ बसंत

मुनीर शिकोहाबादी




शबनम की है अंगिया तले अंगिया की पसीना
क्या लुत्फ़ है शबनम तह-ए-शबनम नज़र आई

मुनीर शिकोहाबादी




शर्म कब तक ऐ परी ला हाथ कर इक़रार-ए-वस्ल
अपने दिल को सख़्त कर के रिश्ता-ए-इंकार तोड़

मुनीर शिकोहाबादी




शुक्र है जामा से बाहर वो हुआ ग़ुस्से में
जो कि पर्दे में भी उर्यां न हुआ था सो हुआ

मुनीर शिकोहाबादी