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मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल शायरी | शाही शायरी

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल शेर

32 शेर

आ के सज्जादा-नशीं क़ैस हुआ मेरे ब'अद
न रही दश्त में ख़ाली मिरी जा मेरे ब'अद

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




आए कभी तो दश्त से वो शहर की तरफ़
मजनूँ के पाँव में जो न ज़ंजीर-ए-जादा हो

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




आशिक़ को न ले जाए ख़ुदा ऐसी गली में
झाँके न जहाँ रौज़न-ए-दीवार से कोई

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




अगर उर्यानी-ए-मजनूँ पे आता रहम लैला को
बना देती क़बा वो चाक कर के पर्दा महमिल का

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




अपने मजनूँ की ज़रा देख तो बे-परवाई
पैरहन चाक है और फ़िक्र सिलाने की नहीं

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




बा'द मरने के मिरी क़ब्र पे आया 'ग़ाफ़िल'
याद आई मिरे ईसा को दवा मेरे बा'द

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




बरसों ख़याल-ए-यार रहा कुछ खिचा खिचा
इक दम मिरा जो और तरफ़ ध्यान बट गया

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




दुश्मन के काम करने लगा अब तो दोस्त भी
तू ऐ रक़ीब दरपय-ए-आज़ार है अबस

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल




फ़रियाद की आती है सदा सीने से हर दम
मेरा दिल-ए-नालाँ है कि अंग्रेज़ी घड़ी है

मुनव्वर ख़ान ग़ाफ़िल