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मंज़र लखनवी शायरी | शाही शायरी

मंज़र लखनवी शेर

61 शेर

बहकी बहकी निगह-ए-नाज़ ख़ुदा ख़ैर करे
हुस्न में इश्क़ के अंदाज़ ख़ुदा ख़ैर करे

मंज़र लखनवी




बे-ख़ुद ऐसा किया खौफ़-ए-शब-ए-तन्हाई ने
सुबह से शम्अ जला दी तिरे सौदाई ने

मंज़र लखनवी




बुरा हो इश्क़ का सब कुछ समझ रहा हूँ मैं
बना रहा है कोई बन रहा हूँ दीवाना

मंज़र लखनवी




छिड़ी है आज मुझ से आसमाँ से
ज़रा हट जाइएगा दरमियाँ से

मंज़र लखनवी




चुने थे फूल मुक़द्दर से बन गए काँटे
बहार हाए हमारे लिए बहार नहीं

मंज़र लखनवी




दामन-ओ-जेब-ओ-गरेबाँ का नहीं कोई मलाल
ग़म ये है दस्त-ए-जुनूँ कल के लिए काम नहीं

मंज़र लखनवी




दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे

मंज़र लखनवी




दो घड़ी दिल के बहलने का सहारा भी गया
लीजिए आज तसव्वुर में भी तन्हाई है

मंज़र लखनवी




दो घड़ी दिल के बहलाने का सहारा भी गया
लीजिए आज तसव्वुर में भी तंहाई है

मंज़र लखनवी