EN اردو
मंज़र लखनवी शायरी | शाही शायरी

मंज़र लखनवी शेर

61 शेर

वहशत वहशत तिरी तफ़रीह का सामाँ है अभी
कि गरेबाँ का मिरे नाम गरेबाँ है अभी

मंज़र लखनवी




वो तो कहिए आप की उल्फ़त में दिल बहला रहा
वर्ना दुनिया चार दिन भी रहने के क़ाबिल न थी

मंज़र लखनवी




ये इंसान नादीदा उल्फ़त का मारा
ख़ुदा जाने किस किस को सज्दा करेगा

मंज़र लखनवी




ज़ुल्म पर ज़ुल्म आ गए ग़ालिब
आबले आबलों को छोड़ गए

मंज़र लखनवी




एक मूसा थे कि उन का ज़िक्र हर महफ़िल में है
और इक मैं हूँ कि अब तक मेरे दिल की दिल में है

मंज़र लखनवी




अब इतना अक़्ल से बेगाना हो गया हूँ मैं
गुलों के शिकवे सितारों से कह रहा हूँ मैं

मंज़र लखनवी




अहद-ए-शबाब-ए-रफ़्ता क्या अहद-ए-पुर-फ़ज़ा था
जीने का भी मज़ा था मरने का भी मज़ा था

मंज़र लखनवी




अहल-ए-महशर देख लूँ क़ातिल को तो पहचान लूँ
भोली-भाली शक्ल थी और कुछ भला सा नाम था

मंज़र लखनवी




अपनी बीती न कहूँ तेरी कहानी न कहूँ
फिर मज़ा काहे से पैदा करूँ अफ़्साने में

मंज़र लखनवी