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मंज़र लखनवी शायरी | शाही शायरी

मंज़र लखनवी शेर

61 शेर

मिरा बेड़ी पहनना था कि दुनिया की हवा बदली
ज़माने की बहारें फट पड़ीं आ के गुलिस्ताँ पर

मंज़र लखनवी




मर्ग-ए-आशिक़ पे फ़रिश्ता मौत का बदनाम था
वो हँसी रोके हुए बैठा था जिस का काम था

मंज़र लखनवी




मैं तिनके चुनता फिरता हूँ सय्याद तीलियाँ
तय्यार हो रहा है क़फ़स आशियाँ के साथ

मंज़र लखनवी




माँगने पर क्या न देगा ताक़त-ए-सब्र-ओ-सुकून
जिस ने बे माँगे अता कर दी परेशानी मुझे

मंज़र लखनवी




कुछ अब्र को भी ज़िद है 'मंज़र' मिरी तौबा से
जब अहद किया मैं ने घनघोर घटा छाई

मंज़र लखनवी




किसी आँख में नींद आए तो जानूँ
मिरा क़िस्सा-ए-ग़म कहानी नहीं है

मंज़र लखनवी




किस का कूचा है आ गया हूँ कहाँ
याँ तो कुछ नींद आई जाती है

मंज़र लखनवी




कीजिए क्यूँ मुर्दा अरमानों से छेड़
सोने वालों को तो सोने दीजिए

मंज़र लखनवी




खेलना आग के शो'लों से कुछ आसान नहीं
बस ये इक बात ख़ुदा-दाद है परवाने में

मंज़र लखनवी