सलाम तेरी मुरव्वत को मेहरबानी को
मिला इक और नया सिलसिला कहानी को
ख़ुर्शीद अहमद जामी
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तिरी निगाह मुदावा न बन सकी जिन का
तिरी तलाश में ऐसे भी ज़ख़्म खाए हैं
ख़ुर्शीद अहमद जामी
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वफ़ा की प्यार की ग़म की कहानियाँ लिख कर
सहर के हाथ में दिल की किताब देता हूँ
ख़ुर्शीद अहमद जामी
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याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में
मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई
ख़ुर्शीद अहमद जामी
यादों के दरख़्तों की हसीं छाँव में जैसे
आता है कोई शख़्स बहुत दूर से चल के
ख़ुर्शीद अहमद जामी
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ज़िंदगानी के हसीं शहर में आ कर 'जामी'
ज़िंदगानी से कहीं हाथ मिलाए भी नहीं
ख़ुर्शीद अहमद जामी
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