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कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई | शाही शायरी
koi halchal hai na aahaT na sada hai koi

ग़ज़ल

कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई

ख़ुर्शीद अहमद जामी

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कोई हलचल है न आहट न सदा है कोई
दिल की दहलीज़ पे चुप-चाप खड़ा है कोई

एक इक कर के उभरती हैं कई तस्वीरें
सर झुकाए हुए कुछ सोच रहा है कोई

ग़म की वादी है न यादों का सुलगता जंगल
हाए ऐसे में कहाँ छोड़ गया है कोई

याद-ए-माज़ी की पुर-असरार हसीं गलियों में
मेरे हमराह अभी घूम रहा है कोई

जब भी देखा है किसी प्यार का आँसू 'जामी'
मैं ने जाना मिरे नज़दीक हुआ है कोई