कभी न आसूदा-ए-अमल हो मगर इरादा भी कम नहीं है
और इस इरादे का ऊँची आवाज़ में इआदा भी कम नहीं है
शहंशह-ए-वक़्त और दरबारी अपने सूद ओ ज़ियाँ से वाक़िफ़
सरीर-आरा-ए-सल्तनत कोई ख़ानवादा भी कम नहीं है
असा-ए-फ़रमाँ-रवाई जादू जगाए जिस तौर भी रवा है
रुमूज़-ए-असरार-ए-हुक्मरानी में शाहज़ादा भी कम नहीं है
कोई रखे बे-जहत सफ़र में मसाफ़तों का हिसाब कैसे
कि तौसन-ए-बे-ज़माम को बे-निशान जादा भी कम नहीं है
यही बहुत है किसी तरह से भरम ही रह जाए पेश दुनिया
अगर मयस्सर नहीं है बादा ख़याल-ए-बादा भी कम नहीं है
मुझ ऐसे उफ़्ताद-गाँ की ढारस न जाने कैसे बंधी हुई है
पहाड़ सी उम्र काटने को ये ज़ेहन-ए-सादा भी कम नहीं है
किसी का खोटा नसीब 'यासिर' किसे ख़बर किस घड़ी खरा हो
जुलूस-ए-शाही के साथ इक बे-ज़बाँ पियादा भी कम नहीं है

ग़ज़ल
कभी न आसूदा-ए-अमल हो मगर इरादा भी कम नहीं है
ख़ालिद इक़बाल यासिर