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ज़माने के दरबार में दस्त-बस्ता हुआ है | शाही शायरी
zamane ke darbar mein dast-basta hua hai

ग़ज़ल

ज़माने के दरबार में दस्त-बस्ता हुआ है

ख़ालिद इक़बाल यासिर

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ज़माने के दरबार में दस्त-बस्ता हुआ है
ये दिल उस पे माइल मगर रफ़्ता रफ़्ता हुआ है

अचानक ही हथियार वाले नहीं सख़्त-जाँ ने
जिगर वक़्त के साथ ख़स्ता शिकस्ता हुआ है

कहीं अंदर अंदर सुलगती थी चिंगारी कोई
मगर हादसा आख़िर-ए-कार शाम-ए-गुज़िश्ता हुआ है

कई बार जल्लाद ने खींच देखा है उस को
मगर मुंजमिद दार का सर्द तख़्ता हुआ है

ख़बर-दार रहने लगा शहरयार उस से 'यासिर'
क़लम मेरे हाथों में ख़ंजर का दस्ता हुआ है